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________________ www.vitragvani.com 94] [सम्यग्दर्शन : भाग-4 अवश्य होता है। ज्ञानचेतना अतिसूक्ष्म है, चक्रवर्ती की तलवार की तीक्ष्ण धार की तरह एक झटके में वह प्रज्ञाछैनी, ज्ञान और राग के दो टुकड़े कर डालती है। ऐसा भेदज्ञान करने में प्रज्ञाछैनी को कितनी देर लगेगी? तो कहते हैं कि तत्क्षण एक समय में वह आत्मा और बन्ध को भिन्न कर डालती है। चेतना जहाँ अन्तर में एकाग्र हुई कि उसी समय में वह बन्धभावों से भिन्न शुद्ध आत्मा को अनुभव करती है - ऐसा भेदज्ञान निपुण पुरुष करते हैं; निपुण पुरुष, अर्थात् आत्मानुभव में प्रवीण जीव; — फिर वह पुरुष हो या स्त्री हो, स्वर्ग का देव हो या नरक का नारकी हो; आत्मा का अनुभव करने में प्रवीण हैं, वे जीव निपुण हैं, मोक्ष को साधने की कला उन्हें आती है... और संसार का किनारा नजदीक आ गया है। ऐसे भेदज्ञाननिपुण जीव, प्रज्ञाछैनी द्वारा बन्ध से भिन्न शुद्ध आत्मा को साधते हैं। ऐसा भेदज्ञान, जीव को आनन्द उपजाता है। भेदज्ञान होते ही आनन्दरूप शुद्ध आत्मा अनुभव में आता है और बन्धभाव, शुद्धस्वरूप से बाहर भिन्न रह जाते हैं, यह मोक्षमार्ग है। ___ वाह ! सन्त ऐसा भेदज्ञान कराकर कहते हैं कि भाई ! तू अन्तर में ऐसा भेदज्ञान कर । यह भेदज्ञान तुझे महा आनन्द उत्पन्न करेगा और मोक्ष प्राप्त करायेगा। भेदज्ञान के लिये यह अवसर है। अनादि के बन्धन से छूटकर सुखी होने के लिये यह समय है, तू इस अवसर को चूक मत जाना। (गुरुदेव परम वात्सल्य भरी प्रेरणा से कहते हैं कि-) हे भाई! अभी आत्मज्ञान के लिये यह अवसर है... तू यह बात Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007771
Book TitleSamyag Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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