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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-4] [93 होता है; फिर सकल रागादि का तथा कर्म का क्षय होने से बन्ध को सर्वथा छेदकर साक्षात् मोक्षदशा प्रगट होती है। इस प्रकार प्रज्ञाछैनी द्वारा बन्धन को छेदकर आत्मा मुक्त होता है; इसलिए प्रज्ञारूप ज्ञानचेतना, वह मोक्ष का पंथ है। ___ अन्तर में ज्ञान और राग के बीच की साँध पकड़ने के लिये उपयोग में बहुत सूक्ष्मता चाहिए। इन्द्रियाँ और मन दोनों से छूटकर अतीन्द्रिय उपयोग द्वारा राग से भिन्न आत्मा अनुभव में आता है; उसमें अन्तर्मुख उपयोग का बहुत प्रयत्न है । देह-मन-वाणी तथा जड़कर्म, वे तो जीव से एकक्षेत्र में होने पर भी भिन्न प्रदेशवाले हैं, रूपी हैं, जड़ हैं, वे नये आते हैं और जाते हैं-ऐसी प्रतीति विचार द्वारा उत्पन्न होती है, परन्तु अन्दर में जीव की पर्याय के साथ एक प्रदेश में रहे हुए जो रागादिभाव, उनसे भिन्न शुद्ध जीव का अनुभव कठिन है; कठिन होने पर भी सूक्ष्म प्रज्ञा द्वारा उनके बीच के स्वभावभेद को जानकर भिन्नता का अनुभव हो सकता है। कठिन है परन्तु अशक्य नहीं, हो सके वैसा है और ऐसी भिन्नता का अनुभव करानेवाली भगवतीप्रज्ञा, वही मोक्षसाधन है। अनन्त जीव ऐसा अनुभव करके मोक्ष को प्राप्त हुए हैं। प्रज्ञाछैनी द्वारा विचार करने से अन्तर में ऐसी प्रतीति होती है कि राग भिन्न और मैं भिन्न; रागरहित का आत्मलाभ सम्भव है; राग के अभाव में आत्मा का अभाव नहीं हो जाता। राग के अभाव में भी आत्मा अपने चैतन्यस्वरूप से जीता है; इसलिए चेतनास्वरूप ही जीव है, रागस्वरूप नहीं - ऐसा अन्दर का भेदज्ञान अत्यन्त कठिन होने पर भी, अन्दर के तीव्र प्रयत्न द्वारा हो सकता है। राग के काल में ही उससे भिन्न शुद्ध जीव का अनुभव, ज्ञानचेतना द्वारा Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007771
Book TitleSamyag Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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