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सम्यग्दर्शन : भाग -4]
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(प्रवचन में अत्यन्त महिमापूर्वक पूज्य गुरुदेव श्री कहते हैं कि:-) अहा! आचार्यदेव ने अनुभवदशा का अचिन्त्यस्वरूप समझाया है! ऐसे अनुभव में आनन्दपरिणति खिलती है । स्वानुभव में ज्ञान भी अतीन्द्रिय है और आनन्द भी अतीन्द्रिय है ।
हे जीवों! आत्मसन्मुख होकर तुम ऐसा अनुभव करो
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अनन्त सिद्ध भगवन्तों के साथ में
अहो ! अरिहन्त भगवान के शासन में प्राप्त होनेवाली आत्मा की बोधि परम आनन्दरूप है, उससे ऊँचा जगत में कोई नहीं है । महाभाग्य से प्राप्त हुआ ऐसा उत्तम मार्ग, उसका हे जीव ! तू उत्साह से आराधन कर ।
अहो, धन्य मार्ग! यह अपूर्व मार्ग मुझे साधना है; इसकी साधना से ही मुझे आत्मा का परम सुख प्राप्त होगा । भवदुःख का नाश करनेवाला और मोक्षसुख को देनेवाला यह जैनधर्म है। इस मार्ग की साधना द्वारा अनन्त सिद्ध भगवन्तों के साथ सदा काल रहना बनेगा।
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