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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-3] [53 आत्मा की धगश जिसे आत्मा की वास्तविक धगश जगती है, उस जीव की दशा कैसी होती है ? यह समझाते हुए एक बार गुरुदेव ने कहा था कि : आत्मार्थी को सम्यग्दर्शन के पहले स्वभाव समझने के लिये इतना तीव्र रस होता है कि ज्ञानी के पास से स्वभाव सुनते ही वह ग्रहण होकर अन्तर में उतर जाये... आत्मा में परिणम जाये। अहो! मेरा ऐसा स्वभाव, गुरु ने बतलाया !! इस प्रकार गुरु का उपदेश ठेठ आत्मा में स्पर्श कर जाता है। जिस प्रकार कोरे घड़े पर पानी की बूंद पड़ते ही वह चूस लेता है अथवा तमतमाते लोहे पर पानी की बूंद पड़ते ही वह चूस लेता है; इसी प्रकार जिसे तीव्र आत्मजिज्ञासा जगी है... और जो दुःख से अति संतप्त है – ऐसे आत्मार्थी जीव को श्रीगुरु से आत्मशान्ति का उपदेश मिलते ही वह उसे चूस लेता है, अर्थात् तुरन्त ही उस उपदेश को अपने आत्मा में परिणमा देता है। ____ आत्मार्थी को स्वभाव की जिज्ञासा और झनझनाहट ऐसी उग्र होती है कि स्वभाव' सुनते हुए तो हृदय में चीरकर उतर जाये... अरे ! स्वभाव कहकर ज्ञानी क्या बतलाना चाहते हैं ? इसी का मुझे ग्रहण करना है - इस प्रकार रोम-रोम में स्वभाव के प्रति उत्साह जगे और परिणति का वेग स्व-सन्मुख ढले, ऐसा पुरुषार्थ उत्पन्न करे कि स्वभाव प्राप्त करके ही रहे, स्वभाव की प्राप्ति न हो, तब तक उसे चैन नहीं पड़े। - ऐसी दशा हो, तब आत्मा की वास्तविक धगश कहलाती Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007770
Book TitleSamyag Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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