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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-3] [35 जिन्होंने अपने चैतन्यतत्त्व को जाना है और अपने ज्ञान को चैतन्यतत्त्व की भावना में लीन किया है – ऐसे सन्त मुनिवर अन्तरस्वभाव के संयम में सावधान हैं और उनका वह वीतरागी संयम, दु:खमय ऐसे मरण के नाश का कारण है। घातनशील जो यम, उसका संयम नाश करता है, अर्थात् मुनिवरों का संयम, मरण को मार डालनेवाला है और जन्म-मरणरहित - ऐसी सिद्धदशा का कारण है। जिसे संयम प्रगट हुआ, उसके जन्म-मरण का नाश हो जाता है; इसलिए हे जीव! यदि तुझे शान्ति चाहिए हो, जन्म-मरण की यातना से छूटना हो तो ऐसी मुनिदशा प्रगट करना ही पड़ेगा। यति-मुनिवर अपने संयम में यत्नशील वर्तते हुए यातनामय यम का नाश करते हैं। जो सम्यग्दर्शन-ज्ञान प्राप्त करके चैतन्य की शरण से वीतरागी संयम प्रगट करते हैं, उन्हें फिर से दूसरी माता के गर्भ में अवतार नहीं होता, उन्हें दुःखमय मरण का नाश होकर मुक्ति हो जाती है। इसलिए - हे जीवों! यदि मरण से बचना हो... और आत्मा की शान्ति चाहिए हो तो चैतन्य की शरण करो।. आराधना का उत्साह सम्यक्त्वादि की आराधना की भावना करना, आराधना के प्रति उत्साह बढ़ाना, आराधक जीवों के प्रति बहुमान से प्रवर्तन करना - इत्यादि सर्व प्रकार के उद्यम द्वारा आत्मा को आराधना में जोड़ना, यह मुनियों का तथा श्रावकों का - सबका कर्तव्य है। आराधना को प्राप्त जीवों का दर्शन और सत्संग आराधना के प्रति उत्साह जागृत करता है। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007770
Book TitleSamyag Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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