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________________ 36] www.vitragvani.com [ सम्यग्दर्शन : भाग-3 त....त्त्व....च....र्चा (बांकानेर, चैत्र शुक्ला ८ से १३ की रात्रि - चर्चा में से) प्रश्न : एक समय में राग और वीतरागता दोनों भाव साथ में होते हैं ? — — - उत्तर : हाँ; साधक को आंशिक राग और आंशिक वीतरागता - ऐसे दोनों भाव एक साथ होते हैं। जैसे, सम्यग्दर्शन हुआ, वहाँ आंशिक शुद्धता प्रगट हुई और अभी साधक को अशुद्धता भी है; इस प्रकार आंशिक शुद्धता और आंशिक अशुद्धता – ऐसे दोनों भाव साधकदशा में एक साथ होते हैं परन्तु उसमें जो शुद्धता है, वह संवर-निर्जरा का कारण है और जो अशुद्धता है, वह आस्रव-बन्ध का कारण है; इसलिए साधक को आस्रव-बन्ध-संवर और निर्जरा ऐसे चारों ही प्रकार एक साथ होते हैं। अहो! यह तो अध्यात्मतत्त्व का अन्तरङ्ग विषय है। यह हिन्दुस्तान की मूल विद्या है। प्रश्न : जब राग पर लक्ष्य हो, तब तो ज्ञानी को बहिर्मुखता ही है न ? उत्तर : राग पर भले ही उपयोग का लक्ष्य हो परन्तु उस समय भी अन्दर साधक को रागरहित शुद्धपरिणति तो वर्तती ही है । उपयोग भले ही बाहर में हो, इससे कहीं जो शुद्धपरिणति प्रगट हुई है, उसका अभाव नहीं होता; जितनी शुद्धता है, उतनी अन्तर्मुख परिणति है । प्रश्न : सम्यग्दर्शन प्राप्त करना ही है तो उसे क्या करना ? उत्तर : राग और चैतन्य को भिन्न जानकर, चैतन्यस्वभाव में Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007770
Book TitleSamyag Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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