________________
www.vitragvani.com
34]
[सम्यग्दर्शन : भाग-3
करके मोक्षमार्ग में आरोहण करो। चारित्र, द्रव्यानुसार होता है, अर्थात् जितना जोर करके द्रव्य में लीन हो, उतना चारित्र होता है। जितना द्रव्य का आश्रय करे, उतनी शान्ति प्रगट होती है; इसलिए पहले शुद्धद्रव्य को पहचानकर उसके ही आश्रय से लीनता करो। पहले शुद्धद्रव्य की पहचान तो होनी चाहिए। शुद्धद्रव्य पर जिसकी दृष्टि है, वही सम्यग्दृष्टि है। सम्यग्दर्शन, वह चारित्र का मूल है और चारित्र, वह मोक्ष का मूल है। चैतन्य-चिन्तामणिरूप शुद्ध आत्मा में दृष्टि और लीनता करके, उसकी जितनी भावना करे उतना फल प्रगट होता है... भगवान चैतन्य-चिन्तामणि अनादि -अनन्त परिपूर्ण है। उसकी भावना करने से सम्यग्दर्शन-ज्ञान -चारित्र और मोक्ष हो जाता है।
यह देहादि का संयोग तो अनन्त बार आया और गया, यह कहीं आत्मा की चीज नहीं है; तथा पुण्य-पाप भी अनादि से किये परन्तु उनरूप आत्मा हो नहीं गया। यदि पुण्य के समय पुण्यरूप ही हो गया होता तो वह पलटकर वापस पाप कहाँ से आया? और पाप के समय यदि पापरूप ही हो गया होता तो वह पाप पलटकर वापस पुण्य कहाँ से आया? पुण्य-पाप दोनों का नाश होने पर भी, आत्मा ऐसा का ऐसा अखण्ड चैतन्यमूर्ति रहता है। ऐसे शुद्ध चैतन्यद्रव्य का आश्रय करने से चारित्र प्रगट होता है और जितनी वीतरागी चारित्रदशा प्रगट हुई, उसमें द्रव्य अभेदता पाता है। जितना अन्तर का आश्रय करे, उतना चारित्र प्रगट होता है और जितना चारित्र प्रगट हो, उतनी द्रव्य की शुद्धता प्रगट होती है। इसलिए हे मुमुक्षुओं ! या तो शुद्धद्रव्य का आश्रय करके, अथवा तो वीतरागी चारित्र का आश्रय करके मोक्षमार्ग में आरोहण करो।
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.