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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-3] ज्ञानी की पहचान (१) (समयसार गाथा ७५ से ७९ के भेदज्ञान-प्रेरक अद्भुत प्रवचनों से) __ ज्ञानी हुआ आत्मा किस प्रकार पहचाना जाता है? उसका चिह्न क्या? – ऐसा शिष्य का प्रश्न था; उसके उत्तर में आचार्य भगवान ने कहा कि जो ज्ञानी है, वह जीव, ज्ञानस्वभावी अपने आत्मा को रागादि से भिन्न जानता हुआ, अपने निर्मल ज्ञानपरिणाम को ही करता है, इसके अतिरिक्त अन्य किसी परभाव को ज्ञान के कार्यरूप जरा भी नहीं करता; उनका वह जाननेवाला ही रहता है, यह ज्ञानी का चिह्न है। अब प्रश्न होता है कि ज्ञानी, पुद्गल कर्म को तथा रागादि परिणाम को जानता है, तो उन्हें जानने पर, उनके साथ उस ज्ञानी को कर्ता-कर्मपना है या नहीं? राग को जानते समय ज्ञानी, राग का कर्ता होता है या नहीं होता? उसके उत्तर में आचार्यदेव कहते हैं कि ज्ञानी, रागादिक को जानता होने पर भी, वह उनमें अन्तर्व्यापक नहीं होता, राग को वह अपने ज्ञान से बाह्य स्थित जानता है; इसलिए रागादि की शुरुआत में, मध्य में या अन्त में वह जरा भी व्याप्त नहीं होता, उनमें जरा भी तन्मय नहीं होता, उन्हें ज्ञानस्वरूप में ग्रहण नहीं करता, उनमें एकतारूप परिणमित नहीं होता और उस रागरूप उत्पन्न नहीं होता; वह राग को जानते समय राग से भेदज्ञानरूप ही परिणमित होता है, ज्ञानस्वरूप को ही स्वरूप से ग्रहण करके उसमें एकतारूप परिणमता है, राग से भिन्न ज्ञानरूप ही उत्पन्न होता है। इस प्रकार ज्ञानरूप ही उत्पन्न होते हुए उस ज्ञानी को, रागादि Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007770
Book TitleSamyag Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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