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________________ www.vitragvani.com 18] [ सम्यग्दर्शन : भाग-3 पीयु...' बोलते हैं और उनकी पीयु... पीयु मधुर ध्वनि सुमतिरूप सुहागिनों को बहुत प्रिय लगती है - आज हमारे ऐसा सम्यक्त्वरूपी श्रावण आया है। गुरु धुनि - गरज सुनत शुख उपजत, मोर - सुमन विहसायो..... साधक भाव-अंकूर उठे बहु, जित तित हरष सवायो..... ...... अब मेरे समकित - सावन आयो ...... सम्यक्त्वरूपी वर्षा ऋतु में, श्री वीतराग गुरु की ध्वनिरूप मेघ गर्जना सुनकर सुख उत्पन्न होता है और सुबुद्धिजनों के चित्तरूपी मयूर विकसित हुआ है। आत्मक्षेत्र में साधकभावरूपी अंकुर उगे हैं और असंख्य प्रदेश चैतन्यभूमि में सर्वत्र आनन्द - आनन्द छा गया है... अहो! आज मेरे सम्यक्त्वरूपी सावन आया है। ऐसी आनन्दकारी सम्यक्त्वरूपी वर्षा ऋतु में सदा लवलीन रहने की भावनापूर्वक अन्तिम कड़ी में कवि कहते हैं कि - भूल-धूल कहीं मूल न सूझत, समरस- जल झर लायो 4 'भूधर' क्यों नीकसे अब बाहिर, जिन निरचू घर पायो.... ...... अब मेरे समकित - सावन आयो ..... आत्मा में सम्यक्त्वरूपी वर्षा होने से भूलरूपी धूल कहीं उड़ती दिखायी नहीं देती और सर्वत्र समरसरूपी पानी का झरना, फूट निकला है । इसलिए कलाकार कवि ( भूधरदासजी) कहते हैं कि अब भू-धर बाहर कैसे निकलेगा ? अब हम हमारे निजघर से बाहर नहीं निकलेंगे क्योंकि निरचू कभी भी नहीं चूता - ऐसा घर - अविनश्वर आध्यात्मिक स्थान हमने प्राप्त कर लिया है। इसलिए अब तो वहीं रहकर हम सम्यक्त्वरूपी श्रावण का आनन्द भोगेंगे । आज हमारे सम्यक्त्वरूपी सावन आया है। • 1 Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007770
Book TitleSamyag Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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