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________________ www.vitragvani.com 20] [सम्यग्दर्शन : भाग-3 के साथ या पर के साथ कर्ता-कर्मपना नहीं है। राग को जानने के उपयोग के समय भी उसे राग के साथ किंचित् भी कर्ता-कर्मपना नहीं है; उस उपयोग के साथ ही कर्ता-कर्मपना है। देखो, साधक की दशा! साधक का जहाज, राग के आधार से नहीं चलता; वह तो स्वावलम्बी चैतन्य के आधार से ही चलता है। आहा...! साधक ज्ञानी-धर्मात्मा अपने उपयोग में रागादि को किंचित्मात्र भी ग्रहण करता ही नहीं तो उस राग के अवलम्बन से साधक की शुद्धता बढ़े- ऐसा कैसे हो? चैतन्यस्वभाव के अवलम्बन से साधक की शुद्धता बढ़ती है, यह नियम है। ___जैसे पुद्गल के परिणामस्वरूप कर्म में पुद्गल ही व्यापक है, जीव उनमें व्यापक नहीं है; जीव यदि पुद्गल के कार्य में व्यापे, तब तो वह अजीव हो जाये; जैसे मिट्टी की अवस्थारूप घट में (आदि में, मध्य में या अन्त में) सर्वत्र मिट्टी ही व्यापक है, कुम्हार उसमें व्यापक नहीं है; यदि कुम्हार उसमें व्यापक होवे तो कुम्हार स्वयं ही घट हो जाये ! जिस प्रकार मिट्टी स्वयं घट होकर उसे करती है, वैसे कुम्हार स्वयं कहीं घड़ा नहीं होता, अर्थात् वह उसे नहीं करता; इसी प्रकार रागादि परिणामों में शुद्धनिश्चय से जीव को व्यापकपना नहीं है। जीव तो ज्ञानस्वरूप है और ज्ञानपरिणाम में ही उसका व्यापकपना है। जीव स्वयं ज्ञानरूप होकर उसका कर्ता होता है परन्तु जीव स्वयं रागरूप नहीं हो जाता; इसलिए वह राग का कर्ता नहीं है। ज्ञानी अपने आत्मा को उपयोगस्वरूप ही जानता है, रागस्वरूप नहीं जानता; इसलिए उसके द्रव्य में, गुण में और पर्याय में सर्वत्र ज्ञान का ही व्यापकपना है, राग का उसमें व्यापकपना नहीं है; अथवा उसकी पर्याय की आदि में-मध्य में Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007770
Book TitleSamyag Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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