SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्यग्दर्शन : भाग-3] www.vitragvani.com [9 आध्यात्मचर्चा ज्ञानी का उपयोग और सम्यक्त्व का उद्यम, इस सम्बन्धी सुन्दर तत्त्वचर्चा यहाँ प्रस्तुत की जा रही है । यह चर्चा मुमुक्षु को विशेष मननीय है। प्रश्न : धर्मी के ज्ञान का उपयोग पर की ओर होता है ? उत्तर : हाँ; साधकदशा में धर्मी जीव के ज्ञान का उपयोग परसन्मुख भी होता है । प्रश्न : ज्ञान का उपयोग परसन्मुख हो, फिर भी धर्म होता है ? उत्तर : हाँ; परसन्मुख उपयोग के समय भी, धर्मी को सम्यग्दर्शन- ज्ञानपूर्वक जितना वीतरागभाव हुआ है, उतना धर्म तो वर्तता ही है; ऐसा नहीं है कि जब स्व में उपयोग हो, तब ही धर्म हो और जब पर में उपयोग हो, तब धर्म हो ही नहीं । परसन्मुख उपयोग के समय भी धर्मी को सम्यग्दर्शनरूप धर्म तो धारावाहिकरूप से वर्तता ही है। इसी प्रकार चारित्र की परिणति में जितना वीतरागी स्थिर भाव प्रगट हुआ है, उतना धर्म भी वहाँ वर्तता ही है । प्रश्न : ज्ञानी का उपयोग भी परसन्मुख हो और अज्ञानी का उपयोग भी परसन्मुख हो - उनमें क्या अन्तर है ? उत्तर : उसमें बहुत महान अन्तर है; सबसे पहली बात यह है कि ज्ञानी को सम्यग्दर्शन के समय एक बार तो विकल्प टूटकर उपयोग स्वसन्मुख हो गया है; इसलिए भेदज्ञान होकर प्रमाणज्ञान हो गया है; पश्चात् अब उपयोग उपयोग परसन्मुख जाये, तब भी भेदज्ञानप्रमाण तो साथ ही साथ वर्तता ही है; जबकि अज्ञानी तो Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007770
Book TitleSamyag Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy