________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-3] [223 सम्यक्त्व निष्कम्प मेरुवत अरु निर्मल ग्रही सम्यक्त्व को, श्रावक! ध्याओ ध्यान में उसे ही दु:ख क्षय हेतु को // 86 // सम्यक्त्व को जो ध्यावता वह जीव सम्यक्दृष्टि है, दुष्टाष्ट कर्मों क्षय करे सम्यक्त्व के परिणमन से // 87 // सम्यक्त्व सिद्धि कर अहो स्वप्न में दुषित नहीं, वह धन्य है सुकृतार्थ है, शूर, वीर, पण्डित वही॥ __(भगवान कुन्दकुन्दाचार्य) तीन काल अरु तीन लोक में समकित सम नहीं श्रेय है मिथ्यात्व सम अश्रेय को नहीं जगत में इस जीव को॥ (श्री समन्तभद्राचार्य) क्या कोई तुझे शरणभूत होंगे? अभी तो छोटी-छोटी उम्र में देह छोड़कर चले जाते हैं, बचाने के लिए दश-दश हजार रुपया खर्च करे; परन्तु पैसा क्या कर सकता है? बड़े करोड़पति हों और विदेश से डॉक्टर बुलावें, परन्तु जहाँ मरण का काल आया हो, वहाँ वे क्या बचा सकते हैं ? समूहरूप से एकत्रित सगे-सम्बन्धी भले ही तेरा दीर्घायुपना चाहें और तू भी भले ही दीनता से उनकी ओर टुकुर-टुकुर देखता रहे तो भी क्या कोई तुझे बचा सकेंगे? क्या कोई तुझे शरणभूत होंगे? / Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.