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________________ www.vitragvani.com 2221 [सम्यग्दर्शन : भाग-3 दर्शन धारो पवित्रा तीन लोक तिहुँकाल मांही नहीं दर्शन सो सुखकारी, सकल धरम को मूल यही, इस विन करनी दुःखकारी। मोक्षमहल की परथम सीढी, या विन ज्ञान-चरित्रा, सम्यक्ता न लहे, सो दर्शन धारो भव्य पवित्रा। 'दौल' समझ सुन चेत सयाने, काल वृथा मत खोवे, यह नरभव फिर मिलन कठिन है जो सम्यक् नहि होवे। (पण्डित श्री दौलतरामजी) सम्यक्त्व की महिमा करके उसे धारण करने की प्रेरणा प्रदान करते हुए कवि कहते हैं कि तीन लोक और तीन काल में सम्यग्दर्शन के समान सुखकारी दूसरा कोई नहीं है; समस्त धर्मों का मूल यही है; इसके बिना समस्त करनी दुःखरूप है। यह सम्यग्दर्शन, मोक्षमहल की पहली सीढ़ी है; इसके बिना ज्ञान और चारित्र सम्यक्ता प्राप्त नहीं करते। इसलिए हे भव्यो! ऐसे पवित्र सम्यग्दर्शन को धारण करो। हे सुज्ञ ! दौलतरामजी यह शिक्षा सुनकर तू चेत... और समय व्यर्थ न गँवा; यदि इस अवसर में सम्यक्त्व प्राप्त नहीं किया तो पुनः ऐसा नरभव प्राप्त होना कठिन है। ® Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007770
Book TitleSamyag Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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