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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-3] देखो, यह चैतन्यविद्या का अभ्यास ! यह चैतन्यविद्या तो भारत की मूल विद्या है। पूर्व काल में तो बाल्यवय से ही भारत में बालकों में ऐसी चैतन्यविद्या के संस्कार डाले जाते थे... माताएँ भी धर्मात्मा थीं, वे अपने बालकों को ऐसे उत्तम संस्कार सिखलाती थीं और बालक भी अन्तर में अभ्यास करके, अन्तर में उतरकर, आठ-आठ वर्ष की उम्र में आत्मा का अनुभव करते थे । भारत में चैतन्यविद्या का ऐसा अद्भुत धर्मकाल था.... उसके बदले आज तो इस चैतन्यविद्या का श्रवण प्राप्त होना भी कितना दुर्लभ हो गया है ! परन्तु जिसे हित करना हो और शान्ति अपेक्षित हो, उसे यह चैतन्यविद्या सीखना ही होगी... इसके अतिरिक्त जगत् की दूसरी किसी विद्या के द्वारा आत्मा का हित अथवा शान्ति का अंश भी प्राप्त नहीं हो सकता। इसलिए हे जीवों! 'यह बात हमें समझ में नहीं आती... हमें कठिन लगती है... हमें अभी समय नहीं है' - इस प्रकार व्यर्थ का बकवास करना बन्द करो... और इस चैतन्य के अभ्यास में ही अपनी आत्मा को जोड़ो। छह महीने तक एक धारा से अभ्यास करने से तुम्हें अवश्य आत्मभान और आत्मशान्ति होगी । [219 बाहर की दूसरी विद्या - मैट्रिक अथवा एम.ए. इत्यादि पढ़ने के लिए कितने वर्ष गँवाता है ? पैसा कमाने के लिए विदेश में भी कितने वर्ष गँवाता है... तो यह चैतन्यविद्या जो कि अपूर्व है, उसके लिए एक बार छह महीने तो निकाल । छह महीने तो अन्तर में चैतन्यविद्या का अभ्यास कर ! मन नहीं, राग नहीं, पर की अपेक्षा नहीं - इस प्रकार पर के अवलम्बनरहित स्वाश्रित चैतन्य के अनुभव के लिए निश्चलरूप से छह महीने तो अन्दर में प्रयत्न Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007770
Book TitleSamyag Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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