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________________ www.vitragvani.com 220] [सम्यग्दर्शन : भाग-3 कर! दूसरी सब बातों से निवृत्त होकर, समस्त परभावों से मैं पृथक् हूँ - ऐसा लक्ष्य में लेकर, अन्तर में उतरकर चैतन्यसरोवर में एक बार तो डुबकी मार! स्वरूप के अभ्यास से आत्मप्राप्ति सुलभ है; अधिक से अधिक छह महीने में वह अवश्य प्राप्त होता है। जिसे धुन लगी..... यह निरालम्बी ज्ञान जगत में किसी से घिरता नहीं है, राग का भी घेरा ज्ञान को नहीं है, ज्ञान तो रोग से या राग से-सबसे अद्धर का अद्धर ही रहता है। ऐसे ज्ञानस्वरूप आत्मा सबसे महान् बड़ा पदार्थ है। जगत में इसकी तुलना नहीं है, इसका अनुभव करने की जिसे धुन लगी, वह सतत् अपने परिणाम को स्वसन्मुख झुकाया करता है। अनुभव जीवन, वही सन्तों का वास्तविक जीवन है। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007770
Book TitleSamyag Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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