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[ सम्यग्दर्शन : भाग - 3
प्रकार मात्र चैतन्य का ही अभिलाषी होकर, अन्तर में उसके अनुभव का अभ्यास कर तो उसकी प्राप्ति क्यों नहीं होगी ? अवश्य होगी । 'कितने समय में ?' मात्र दो घड़ी में ! कदाचित् तुझे कठिन लगे और देरी लगे तो भी अधिक में अधिक छह महीने में तो अवश्य आत्मा की प्राप्ति होगी। इस प्रकार आत्मप्राप्ति के अभ्यास का अधिक में अधिक कोर्स छह महीने का है।
यहाँ अधिक में अधिक छह महीना कहकर, कहीं काल की गिनती पर वजन नहीं देना है परन्तु शिष्य को आत्मलगन के भाव कैसे उग्र हैं ? - यह बताना है। जो शिष्य सम्पूर्ण जगत् की दरकार छोड़कर आत्मा का अनुभव करने के लिए तैयार हुआ है, वह शिष्य, काल के माप के समक्ष नहीं देखता... 'कि कितना काल हुआ !' वह तो अन्तर में चैतन्य के पकड़ने के अभ्यास में गहरे से गहरा उतरता जाता है, प्रतिक्षण चैतन्यस्वभाव के समीप ही समीप होता जाता है - ऐसा का ऐसा धारावाही अभ्यास ठेठ आत्मा का अनुभव होने तक वह चालू ही रखता है। ऐसे अनुभव के अभ्यास में उसे अपने ही अन्तर में प्रतिभासित होता है कि मेरे चिदानन्दस्वभाव की शान्ति अब निकट ही है, सुख के समुद्र को स्पर्श कर हवा आ रही है तो अब सुख का समुद्र एकदम पास ही है; इसलिए आचार्यदेव ने कहा है कि हे भाई! छह महीने तक ऐसा अभ्यास करने से तुझे अपने ही हृदय में चैतन्य का विलास दिखलायी देगा। इसलिए अभी तक की अभ्यास की हुई तेरी उलटे-सीधे दलीलों / कुतर्कों को एक ओर रख दे और इस प्रकार अन्तर में चैतन्य के अनुभव का अभ्यास कर |
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