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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-3] [207 जैसे माता वात्सल्य से बालक को समझाती है, उसी प्रकार आचार्यदेव शिष्य को समझाते हैं जिस प्रकार माता, बालक को शिक्षा दे तब किसी समय ऐसा कहती है – बेटा! तू तो बहुत चतुर... तुझे यह शोभा देता है ! और कभी ऐसा भी कहती है तू मूर्ख है... पागल है! – इस प्रकार कभी मृदुता युक्त शब्दों से शिक्षा दे तो कभी कड़क शब्दों से उलहाना दे परन्तु दोनों समय माता के हृदय में पुत्र के हित का ही अभिप्राय है; इसलिए उसकी शिक्षा में कोमलता ही भरी हुई है; उसी प्रकार धर्मात्मा सन्त, बालक जैसे अबुध शिष्यों को समझाने के लिये उपदेश में कभी मृदुता से ऐसा कहते हैं कि हे भाई! तेरा आत्मा सिद्ध जैसा है, उसे तू जान! और कभी कड़क शब्दों में कहते हैं कि अरे मूर्ख! पुरुषार्थहीन नामर्द! तेरे आत्मा को अब तो पहचान, यह मूढ़ता तुझे कब तक रखनी है ? अब तो छोड़! - इस प्रकार कभी मृदु सम्बोधन से और कभी कड़क सम्बोधन से उपदेश दें परन्तु दोनों प्रकार के उपदेश के समय उनके हृदय में शिष्य के हित का ही अभिप्राय है। इसलिए उनके उपदेश में कोमलता ही है.... वात्सल्य ही है।। यहाँ समयसार कलश २३ में भी आचार्यदेव, कोमलता से सम्बोधन करके शिष्य को उपदेश देते हैं। अयि! कथमपि मृत्वा तत्त्वकौतूहली सन् अनुभव भवमूर्तेः पार्श्ववर्ती मुहूर्तम्। पृथगथ विलसंतं स्वं समालोक्य येन त्यजसि झगिति मूर्त्या साकमेकत्वमोहम्॥ Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007770
Book TitleSamyag Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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