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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-3] [163 सच्चे नव तत्त्व की पहचान में सुदेव-गुरु-शास्त्र की और कुदेव आदि की पहचान आ ही जाती है। आस्रव और बन्धतत्त्व की पहचान में कुदेवादि की पहचान आ जाती है। नव तत्त्व के स्वरूप को विपरीतरूप से साधनेवाले सभी कुदेव-कुगुरु-कुशास्त्र हैं। संवर और निर्जरा भाव, वह निर्मल दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप मोक्षमार्ग है, साधकभाव है। आचार्य, उपाध्याय और साधु - वे गुरु हैं, उनका तथा ज्ञानी-धर्मात्माओं का स्वरूप संवर-निर्जरा में आ जाता है। मोक्ष, आत्मा की पूर्ण निर्मलदशा है।अरिहन्त और सिद्ध परमात्मा, वीतराग सर्वज्ञदेव हैं; उनका स्वरूप मोक्षतत्त्व में आ जाता है। इस प्रकार नव तत्त्व में पाँच परमेष्ठी इत्यादि का स्वरूप भी आ जाता है। नव तत्त्व में सम्पूर्ण विश्व के समस्त पदार्थ आ जाते हैं क्योंकि जगत् में नव तत्त्व के अतिरिक्त दूसरा कोई तत्त्व नहीं है। इस प्रकार तत्त्वों के निर्णय का विचार सम्यग्दर्शन का कारण है। यहाँ कहा गया व्यवहार, वह सम्यग्दर्शन का आँगन है। कुदेवादिक के आँगन में खड़ा हो तो वह अन्तर आत्मा के घर में प्रवेश नहीं कर सकता। आत्मा के घर में प्रवेश करनेवाले को नव तत्त्व की श्रद्धारूप आँगन बीच में आता है। जिस प्रकार दुर्जन के आँगन में खड़ा हुआ व्यक्ति, सज्जन के घर में प्रवेश नहीं कर सकता, परन्तु सज्जन के आँगन में खड़ा हुआ ही सज्जन के घर में प्रवेश कर सकता है; इस प्रकार आँगन की भी उस प्रकार की योग्यता होती है। इसी प्रकार आत्मा के अनुभव में जाने के लिए नव तत्त्वरूप आँगन समझना चाहिए । खड़ा हो पुद्गल के आँगन में और कहे कि मुझे भूतार्थस्वभाव के घर में प्रवेश करना है तो ऐसा Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007770
Book TitleSamyag Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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