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________________ www.vitragvani.com परमात्मने नमः मानव जीवन का महान कर्त्तव्य सम्यग्दर्शन (भाग - 3 ) आत्मार्थी सम्बोधन आत्मार्थ के लिये सच्ची तत्परता जगत् के छोटे-बड़े अनेक - विध प्रसङ्गों में जीव अटक जाता है... और इससे वह उलझ जाता है... और उसी के विचार मन्थन में से बाहर नहीं निकल सकता... परिणामस्वरूप वह आत्म-प्रयत्न में आगे नहीं बढ़ सकता, उसे जागृति के लिये सम्बोधन का एक प्रकार यहाँ प्रस्तुत किया गया है। हे जीव ! जिन्हें तेरे आत्मार्थ के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है ऐसे छोटे-बड़े सन्दर्भों में तू अटकेगा तो तेरे महान आत्मप्रयोजन को तू कब साध सकेगा ? जगत में अनुकूल और प्रतिकूल प्रसङ्ग तो बनते ही रहना है । तीर्थङ्कर और चक्रवर्तियों को भी ऐसे प्रसङ्ग क्या नहीं आये हैं? मान और अपमान; निन्दा और प्रशंसा; सुख और दुःख, संयोग और वियोग; रोग और निरोग; ऐसे अनेक परिवर्तनशील प्रसङ्ग तो जगत में बनते ही रहना है परन्तु तेरे जैसा Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai. —
SR No.007770
Book TitleSamyag Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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