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________________ www.vitragvani.com 2 । [सम्यग्दर्शन : भाग-3 आत्मार्थी यदि इन छोटे-छोटे प्रसङ्गों में ही आत्मा को रोक देगा तो आत्मार्थ के महान कार्य को तू कब साध सकेगा? इसलिए ऐसे प्रसङ्गों से अतिशय उपेक्षित हो.... उसमें अपनी शक्ति को जरा भी मत लगा। इन प्रसङ्गों का तेरे आत्मार्थ के साथ कुछ सम्बन्ध ही नहीं है - ऐसा निर्णय करके, आत्मार्थ की सिद्धि जिस प्रकार से हो, उसी प्रकार से तू प्रवर्तन कर! और आत्मार्थ की सिद्धि में बाधक हों - ऐसे परिणामों को अत्यन्तरूप से छोड़... उग्र प्रयत्न द्वारा छोड़। विध-विध परिणामवाले जीव भी जगत में वर्ता ही करेंगे... इसलिए उसका भी खेद-विचार छोड़... और उपरोक्त संयोगों की तरह ही उनके साथ भी आत्मार्थ का सम्बन्ध नहीं है - ऐसा समझकर उनके प्रति उपेक्षित हो... और आत्मार्थ साधने में ही उग्ररूप से प्रवर्तन कर। ___ चाहे जो करके, मुझे मेरे आत्मार्थ को साधना है - यह एक ही इस जगत् में मेरा कार्य है। इस प्रकार अतिदृढ़ निश्चयवन्त हो । मेरे आत्मार्थ के लिए जो कुछ सहन करना पड़े, वह सहन करने को मैं तैयार हूँ परन्तु किसी भी प्रकार से मैं मेरे आत्मार्थ के कार्य से विचलित नहीं होऊँगा; उसमें किंचित् भी शिथिल नहीं होऊँगा... आत्मा के प्रति मेरे उत्साह में मैं कभी भंग नहीं पड़ने दूंगा – मेरी समस्त शक्ति को, मेरे समस्त ज्ञान को, मेरे समस्त वैराग्य को, मेरी श्रद्धा को, भक्ति को, उल्लास को – मेरे सर्वस्व को मैं मेरे आत्मार्थ में जोड़कर अवश्य मेरे आत्मार्थ को साधूंगा - ऐसे दृढ़ परिणाम द्वारा आत्मार्थ को साधने के लिये तत्पर हो! आत्मार्थ साधने के लिये तेरी ऐसी सच्ची तत्परता होगी तो Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007770
Book TitleSamyag Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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