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________________ www.vitragvani.com 148] [सम्यग्दर्शन : भाग-3 जीव के निर्मलभाव का निमित्त पाकर कर्म के परमाणु आना रुक गये, उसे संवर कहते हैं। प्रश्न - क्या परमाणु आते हुए रुक गये? उत्तर - परमाणु आना ही नहीं थे; इसलिए नहीं आये। कोई अमुक परमाणुओं में कर्मरूप परिणमन होना था परन्तु जीव में शुद्धभाव प्रगट होने के कारण वह परिणमन रुक गया' - ऐसा नहीं है। उन परमाणुओं में भी उस समय कर्मरूप होने की योग्यता ही नहीं थी। शास्त्रों में तो अनेक प्रकार की शैली से कथन आता है परन्तु वस्तुस्वरूप क्या है ? - वह लक्ष्य में रखकर इसका आशय समझना चाहिए। पहले विकार के समय कर्म-परमाणु आते थे और अब संवरभाव प्रगट हुआ, उस समय कर्म-परमाणु नहीं आते, उसे संवर कहा है। जीव-अजीव दोनों का ऐसा सहज मेल है कि जहाँ आत्मा में धर्म की योग्यता और संवरभाव प्रगट हुआ, वहाँ उसे कर्मों का आना होता ही नहीं, पुद्गल में उस समय वैसा परिणमन होता ही नहीं; इसलिए आने योग्य नहीं थे उन परमाणुओं को संवर में निमित्त कहा अर्थात् पुद्गल में कर्मरूप परिणमन के अभाव को संवर में निमित्त कहा है। अहो! प्रत्येक द्रव्य और पर्याय की स्वतन्त्रता जाने बिना स्वतत्त्व की रुचि करके स्वभाव तरफ ढलेगा कब? नव तत्त्व के ज्ञान में प्रत्येक द्रव्य-पर्याय की स्वतन्त्रता का ज्ञान तथा देव -शास्त्र-गुरु का ज्ञान भी आ जाता है। सातवाँ, निर्जरा तत्त्व है। आत्मा का भान होने पर अशुद्धता का Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007770
Book TitleSamyag Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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