SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ www.vitragvani.com 122] [सम्यग्दर्शन : भाग-3 आत्मा की पूर्ण चिदानन्ददशा हो गयी, इसका नाम मोक्षदशा है। वह मोक्षदशा होने पर फिर से अवतार अर्थात् संसार परिभ्रमण नहीं होता। वह मुक्त हुए परमात्मा किसी को जगत् का कार्य करने के लिए नहीं भेजते तथा जगत् के जीवों को दु:खी देखकर अथवा भक्तों का उद्धार करने के लिए स्वयं भी संसार में अवतार धारण नहीं करते, क्योंकि उन्हें रागादि भावों का अभाव है। जगत् के जीवों को दुःखी देखकर भगवान अवतार धारण करते हैं - ऐसा माननेवाला भगवान अर्थात् मुक्तात्मा को रागी और पर का कर्ता मानता है; उसने मुक्तात्मा को नहीं पहचाना है। पुनर्भवरहित मोक्षतत्त्व को प्राप्त श्री सिद्ध और अरिहन्त परमात्मा, वे देव हैं; जो उन्हें नहीं पहचानता, उसे तो सच्चा पुण्य भी नहीं है। अक्षय अविनाशी चैतन्यस्वभाव की पूर्णानन्ददशा, वह मोक्षतत्त्व है। उस दशा को प्राप्त करने के पश्चात् जीव को किसी की सेवा करना शेष नहीं रहता। पूर्ण ज्ञान-आनन्द दशा को प्राप्त अरिहन्त परमात्मा, शरीरसहित होने पर भी वीतराग हैं। उन्हें पूर्ण ज्ञान-आनन्द होता है; उन्हें शरीर में रोग नहीं होता, दवा नहीं होती, क्षुधा नहीं लगती; आहार नहीं होता, तथा वे किसी को वन्दन नहीं करते और उनका शरीर स्फटिक के समान स्वच्छ परमौदारिक हो जाता है; वे आकाश में पाँच हजार धनुष ऊपर विचरण करते हैं। जो ऐसे अरहन्त परमात्मा को नहीं मानता, उसने तो मोक्षतत्त्व को व्यवहार से भी नहीं जाना है। श्री केवली भगवान को अनन्त ज्ञान और अनन्त आनन्द Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007770
Book TitleSamyag Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy