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विचारमाला. निवृत्ति औ परमानंदकी प्राप्तिरूप मोक्षकी इच्छावाला है। इहां विवेकका अध्याहार करणा । इस रीतिसे शुछहृदय औ एकाग्रचित्त औ साधनचतुष्टय संपन्न जो पुरुष सो तत्त्वज्ञानका अधिकारी है ।। २७ ।। (५६) अब ज्ञानके अधिकारीको कर्तव्य कहे हैं:दोहा-सो अधिकारी ज्ञानको, श्रवण ज्ञानमय ग्रंथ ॥ सो तबलगि जबलगि भलै, समझै पंथ अपंथ ॥२८॥
टीका-सो अधिकारी पुरुष पलिंगोंसे वेदांतवाक्योंका तात्पर्य निश्चयरूप श्रवण करे । सो षट्लिंग यह हैं:-उपक्रम उपसंहारकी एकरूपता (१) अभ्यास [२] अपूर्वता (३) फल [ ४ ] अर्थवाद (५) उपपत्ति [६] अब इनके अर्थ सुनोःजो अर्थ आरंभमें होवै सोई समाप्तिमें होवै, तहां उपक्रम उपसंहारकी एकरूपता कहिये है । जैसे छां. दोग्यके षष्ठाध्यायके उपक्रम कहिये आरंभमें अद्वि