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वि० ४.
ज्ञानसाधन.
टीकाः -जहां पर्यंत जगतरूप आडंबर है, अर्थ यह जो प्रत्यक्ष प्रमाणके विषय या जगतमें औ शब्दादि प्रमाणजन्य ज्ञान के विषय स्वर्गादि जगतमें, जब पुरुषको वैराग्य उत्पन्न होवै, तब अनायासतेही ज्ञानद्वारा जन्ममरणरूप खेदकी निवृत्ति होते है । जैसे पकी त्वचाको अनायासः सर्प त्याग है तैसे ॥ ६ ॥
(५५) ज्ञानके अधिकारीमें एक वैराग्यही नहीं होवै है, किंतु अपर साधन भी होते हैं, यह कहे हैं:.' दोहा-पाप छीन तप दान बल, हृदय
शांत गतराग ॥ विषय वासना त्याग करि, भयो मुमुक्षु बड़भाग ॥२७॥
टीकाः-जो पुरुषने दान बल कहिये ईश्वरार्थ शुभ कर्मोंकर पाप निवृत्त कीये हैं, अर्थात् जो शुद्ध हृदय है औ उपासनारूप तपके बलसे शांत हृदय कहिये एकाग्रचित्त है औ गतराग कहिये वैराग्यसंयुक्त है औ विषयोंकी वासना त्यागकर अर्थात् षट् संपत्तिसंयुक्त होकर जो बड़े भाग्यवाला अविद्या ततकार्यरूप बंधकी