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वि० ४.
ज्ञानसाधना
तीय ब्रह्म है औ उपसंहार कहिये समाप्तिमें अदितीय ब्रह्म है (१) पुनः पुनः कथनका नाम अभ्यास है । छांदोग्यके षष्ठ अध्यायमें नववार तत्त्वमसि वाक्य है, याते अद्वितीय ब्रह्ममें अभ्यास है (२) प्रमाणांतरसे अज्ञातताको अपूर्वता कहे हैं । उपनिषद्प शब्द प्रमाणसे औ प्रमाणका अद्वितीय ब्रह्म विषय नहीं, याते अद्वितीय ब्रह्ममें अज्ञाततारूप अपूर्वता है
(३) अद्वितीय ब्रह्मके ज्ञानः मूलसहित शोक , मोहकी निवृत्तिरूप फल कह्या है [४] स्तुति अथवा निदाका बोधक वचन अर्थवाद वाक्य कहिये है । अद्वितीय ब्रह्मबोधकी स्तुति, उपनिषदमें स्पष्ट है [५] कथन करे अर्थके अनुकूल युक्तिको उपपत्ति कहे हैं। छांदोग्यमें सकल पदार्थों का ब्रह्मसे अभेद कथनके अर्थ कार्यका कारणसे अभेद प्रतिपादन, अनेक दृष्टांतोंसे कह्या है (६)! इस रीतिसे पलिंगोंसे सकल वेदांतनका तात्पर्य जानिये है । सो श्रवण, ज्ञानमय ग्रंथ जो उपनिषद् ग्रंथ हैं तिनसे सिद्ध होवे है । तिनको श्रवण