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ज्ञानसाधने.
वि० ४. रीसे ग्राम्यधर्म करिके एक घटिकाभर फस रहे हैं, ताळू जो विचारशून्य जगतके जीव हसे हैं, सो तिनकी निर्लजता है, काहेते ऐसे विचार नहीं करे हैं, जो यह श्वान षट्मास पश्चात एकवार संभोग करनेते क्लेशको अनुभव करे हैं, हमारा तो इस कर्ममें जन्म व्यतीत होवै है, हमको परिणाममें कितना क्लेश होवेगा ॥ २४ ॥
(५३) औ जो कहो; पूर्वोक्त विषयोंके त्यागमें कौन प्रमाण हैं तहां सुनोः यद्यपि श्रुति स्मृतिरूप प्रमाण बहुत हैं तथापि ज्ञानी अज्ञानीके वैराग्यके भेद दिखावणे अर्थ महात्माका आचाररूप प्रमाण कहे हैं:दोहा-अनाथ बिसारे विषयरस, संतन जान मलीन॥ ता उचिष्टसों रति करै, कामी काक अधीन ॥ २५॥
टीका:-स्वामी अनाथजी कहे हैं:-संतोंने विषयाँको अविद्याके कार्य औ अनित्यता आदि दूषणोंसहित जानकर त्यागे हैं औ जो पुरुष प्रथमभुक्त औ त्यक्त पदार्थोंसे प्रीति करै हैं औ कामी हुए तिनके आधीन