SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विचारमाला. वि० ४.. ... , अन्य दृष्टांत कहे हैं:-. . दोहा-चोग देषि ज्यू परत खग, आप बंधावत जार। ऐसे सुखसो जानि जग, वश भये हीन विचार ॥२३॥ - टीका:-जैसे विचारशून्य पक्षी, जलवाले स्थानमें चोगकू देखके तृप्तिके अर्थ प्रवृत्त होवै, तहां तृप्तिका अलाभ होव है औ प्रत्युत अपने आपके जालमें बंधायमान करै है, इस रीतिसे दृष्टांत कहकर, अब दार्टात कहे हैं:सो पूर्वोक्त विषय, सुखरहित है; विचारशून्य पुरुष तिनके वश होयके केवल दुःखहीको अनुभव करे हैं ॥२३॥ (५२ ) अब तिन विचारशून्य विषयी पुरुषोंकी निर्लज्जताको, श्वान दृष्टांतसे प्रगट करे हैं:दोहा-श्वान स्वतियको संगकरि, रहत. घरी उरझाय॥ जग प्रानी ताको हसैं अपनो जन्म विहाय॥२४॥ टीका:-कूकर जो अपने पशु स्वभावसे स्वकूक- .
SR No.007743
Book TitleVicharmala Granth Satik Pustak 1 to 8
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnathdas Sadhu, Govinddas Sadhu
PublisherGujarati Chapkhana
Publication Year1832
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy