SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञानसाधनः . वि०.४. दोहा-धायो चात्रिक धूमलहि स्वातिबूंदको मानि॥ मूरख पो विचार बिन - भई दृगनकी हानि ॥२१॥ टीकाः-जैसे कोऊ चातक पक्षी, दूरसे धूमकू देखकर तामें मेघबुद्धिसे स्वाति बूंदका निश्चय करके, सो मूर्ख पक्षी विचारसे विना ता धूममें प्रवेश करे तो बूंदका अलाभ औ नेत्रोंकी हानि होवै है ॥ २१ ॥ अन्य दृष्टांतः'दोहा-नारि पराई स्वप्नमें, भुगती अति मुख पाय॥ धर्म गयो केंद्रपगयो, अशुचि भयो रुखसाय ॥ २२॥ टीकाः-जैसे किसी विचारशून्य पुरुषने परस्त्री वा स्वप्नस्त्री अतिसुख मानके भोगी, ताते संतानका अलाभ औं धर्मकी हानी होवे हैं । कंद्रप गयो कहिये वीर्यकी हानी अरु खसाय कहिये वीर्यपानते. अशुचि होवे है ।। २२॥
SR No.007743
Book TitleVicharmala Granth Satik Pustak 1 to 8
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnathdas Sadhu, Govinddas Sadhu
PublisherGujarati Chapkhana
Publication Year1832
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy