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विचारमाला.
वि० ४.
लीरूप अभ्यस्त दोनों एक वृत्तिके विषय हैं, तहां स्फटि कमें रक्तता की प्रतीति अन्यथाख्याति से होवे है ! तैसे: इहां सिद्धांत में अन्यथाख्यातिही अंगीकार करी है । औ अन्यथाख्यातिमें सर्वथा विद्वेष होवै तो, विषय उपहित आनंदका विषयमें अनिर्वचनीय संबंध उपजे है । विषय उपहित आनंदका स्वरूपसंबंध चेतन में है, ताकी विषयमें अनिर्वचनीय उत्पत्ति होने है, याते इहां अनिर्वचनीय ख्यातिही है | अरु जो कहे, विषया। कार वृतिसे विषय उपहित चेतन स्वरूपानंदका लाभ होवै तो, मार्ग में वृक्षाकार वृत्तिसे तथा सर्वज्ञेयाकार वृत्तिसे ज्ञेय उपहित चेतनस्वरूपानंद का लाभ हुवा चाहिये ? सो बने नहीं: - काहेते अभिलषित विषयाकार वृत्तिसे विषय उपहित चेतन स्वरूपानंदका भान होवै है, अन्यका नहीं ॥ २० ॥
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(५१) ननु विषयों में सुख नहीं तो, पुरुषोंकी प्रवृत्ति क्यों हो है ? या शंका के होयां, विचार विना होवे है औ प्रवृत्तिसे प्रत्युत क्लेशही होवे है, यह अर्थ सहटांत तीन दोहोंकर दिखावै हैं: