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वि०.४.
ज्ञानसाधन.
न हुआ चाहिये, काहेते समाधिमें किसी विषयका संबंध नहीं है, याते विषय में आनंद नहीं । इत्यादि युक्ति है । औ वेदमें यह लिखा है :- " आत्मस्वरूप आनंदकं लेके सारे आनंदवाले होवे हैं, " ननु विषयों में आनंद नहीं है तो भान क्यूं हों हैं ? तहां सुनोः - विषय उपहित चेतन स्वरूप आनंदकी पुरुषकूं विषय में प्रतीति हो है । ननु विना होइ वस्तुकी प्रतीति होवे नहीं औ चेतनस्वरूप नित्य आनंदकी विषयमें अनिर्वचनीय उत्पत्ति हो, यह कहना बने नहीं औ अन्यदेश में स्थित विषयकी अन्यदेश में प्रतीति वा अन्यवस्तुकी अन्यरूपते प्रतीतिरूप अन्यथा ख्यातिका अंगीकार नहीं; याते विषय उपहित चेतनस्वरूप सुखकी विषय में प्रतीति होवे है, यह कहना बनै नहीं ? सो शंका भी बने नहीं: - काहेते यद्यपि अन्यथाख्यातिका सिद्धांत में अंगीकार नहीं, तथापि अधिष्ठान औ आरोप्य जहां एकवृत्तिके विषय हो, तहां अन्यथाख्याति ही मानी है । तथाहि: - जैसे रक्तपुष्प संबंधी स्फटिकरूप अधिष्ठान औ ला
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