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विचारमाला.
वि०४. विषयोंमें सुख संज्ञामात्र है। जैसे किसी जन्मांध पुरुषका कमलनयन नाम कल्पे, सो निरर्थक कथन मात्र है। ताते हे शिष्य ! इन-पृथ्वीके शब्दादि विषयोंमें भूलकरभी प्रीति मत कर । ननु विषयोंमें सुख नहीं, यह तुमारी कपोलकल्पना है, सो शंका बने नहीं: काहेते युक्ति प्रमाणकर या अर्थकी सिद्धि होवे है । जो कहो युक्ति प्रमाण कौन है ? तहां सुनोः-जो विषयमें आनंद होवै तो, एक विषयसे तृप्त जो पुरुष ताकू जब दूसरे विषयकी इच्छा होवै तबभी प्रथम विषयसे आनंद हुआ चाहिये।
औ होवै नहीं है, याते विषयमें आनंद नहीं। किंवाःजो विषयमें ही आनंद होवै तो, जा पुरुषका प्रियपुत्र अथवा और कोई अत्यंत प्यारा जो अकस्मात बहुतकाल पीछे मिल जावै तब वाकू देखतेही प्रथम जो. आनंद होवै सो आनंद फेर नहीं होता,सो सदाही हुआचाहिये. काहेते आनंदका हेतु जो पुरुष है सो वाके समीप हैं, याते पदार्थमें आनंद नहीं । किंवाः-जो विषयमें आनंद होवै तो, समाधिकालविषे जो योगानंदका भान होवैसो