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________________ 'वि०.४. ज्ञानसाधन पासि बड़ आहि ॥ ज्ञान लोप संसारकर, । भूल न गहिये ताहि ॥१९॥ टीका:-उक्त दृष्टांतोंकी न्याई शरीरमें आत्म अ. भिमानकर जगतमें आसक्ति होवै, ताते ता अभिमानका परित्याग कर । यद्यपि चिरकालकी होनेते अभिमानरूप पासी अजर है तथापि ज्ञानकर ताका बाध निश्चयरूप लोप होवै है,तातेसो तू कर । इस रीतिसे लोप किये पुनः संसारमें भूलकरभी आसक्ति होवै नहीं।॥१९॥ । (५०) विषवत विषय विसार यह पूर्व कह्या, तामें हेतु कहे हैं:दोहा-सुख ब्रह्मा इंद्रादिके, श्वानविष्ठ-. वत त्याग ॥ नाममात्र सुख अवनिके, भूल न इन अनुराग ॥२०॥ टीकाः-ब्रह्मा औ इंद्रादि देवनके जो शब्दादि विषय हैं, सो कूकरके विष्ठावत् नीरस हैं; तिनमें सुख नही; ताते तिनका परित्याग कर। औ पृथ्वीके शब्दादि.
SR No.007743
Book TitleVicharmala Granth Satik Pustak 1 to 8
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnathdas Sadhu, Govinddas Sadhu
PublisherGujarati Chapkhana
Publication Year1832
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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