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________________ विचारमाला. वि० ४. बात इकता दृढ संकल्प प्रयत्न तन,प्रापतिअष्ट कहंत ॥ ८॥ टीकाः-स्त्रीके सौंदर्यादि गुणोंका श्रवण औ कदाचित् अनुभव कियेका स्मरण औ हर्षपूर्वक तिनका कथन औ तिनका चिंतन औ एकांत स्थलमें स्त्रीसे संभाषण औं ताकी प्राप्तिका दृढ संकल्प, पुनः ताकी प्राप्ति अर्थ प्रयत्न औ तासे संभोगः यह अष्ट प्रकारका मैथुन कहा है ॥ ८॥ (४३) इस रीतिसे स्त्रीमें दूषण कहकर,अब पुत्रमें दूषण दिखावै हैं:दोहा-सुत मीठी बातां कहै, मनहुमाहिनीमंत ॥ सुनि सुनि आनंद पावहि, वश होत मूढ जग जंत ॥९॥ टीकाः-पुत्र जो मधुर तोतले वचन कहे है, सो मानो चित्तके मोहित करणेवाले मोहिनी मंत्र हैं । तिनोंकू पुनः पुनः श्रवण करके जे आनंदमन होके ताके वश होवे हैं ते पुरुष मूढ हैं । सोई कहा है:
SR No.007743
Book TitleVicharmala Granth Satik Pustak 1 to 8
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnathdas Sadhu, Govinddas Sadhu
PublisherGujarati Chapkhana
Publication Year1832
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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