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वि०.४.
ज्ञानसाधना है-"जब पंडित पढ़ि तियपै ढिसरे, उक्ति युक्ति सबही तब विसरे" ॥ किंवा वित्तकी एकाग्रता अर्थ जो ध्येयाकार वृत्तिरूप ध्यान आश्वास इनकू विचारसहित दूर करे है । मैथुन कियेसे श्वास अधिक टूटे है इही प्राणका खाणा है ॥६॥
(४२) या स्त्रीचिंतनकू मैथुनरूप कहीं कहा हैं ? या.आकांक्षके होयां कहै हैं:दोहा-मैथुन अष्ट प्रकार जो,अनाथ कह्यो श्रुति चाहि ॥इनते निजविपरीत जो, ब्रह्मचर्य कहि ताहि ॥७॥
टीकाः-वक्ष्यमाण दोहेमें कहणा जो है अष्टमैथुन सो श्रुतिमें देखकर कहा है । इस अष्ट प्रकारके प्रकारका मैथुनसे जो विपर्यय है स्त्रीके श्रवण स्मरणा दिका त्यागरूप, सो ब्रह्मचर्य कहिये है॥७॥
सो अष्ट प्रकारका मैथुन कौनसा है ? तहां सुनोःदोहा-सरवन सिमरन कीरतन, चितवन