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वि० ४.
ज्ञानसाधन.
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दोहा - भगवन् तिमिर नसै नहीं, कहि दीपककी बात ॥ पूरन ज्ञान उदय विना, हृदय भरम नहिं जात ॥ २ ॥
टीका :- हे भगवन् ! जैसे अंधकारमें स्थित पुरुषका दीप तैल बत्ती जोतिकीया बातों कीयेसें अंधकार दूर नहीं हो है, तद्वत ब्रह्मज्ञान के उदय विना हृदय में स्थित जो अनात्मा मैं आत्मप्रतीतिरूप भ्रम सो दूर नहीं होवै हैं, यातें आप ज्ञानके साधन कहो ॥ २ ॥
(४०) इस रीति से शिष्य कर पूछे हुए श्रीगुरु ज्ञानके साधन कहे हैं: - श्रीगुरुरुवाच ॥ ज्ञान साधन कहते हैं :दोहा - प्रथमें जगदासक्ति तजि, दारा सुत गृह वित्त ॥ विषवत विषय विसारि जग, राग द्वेष अतित्त ॥ ३ ॥
टीका:- हे शिष्य ! प्रथमं विषय संपादनका साधन रूप जो जगत् तामैं आसक्तिका त्यागकर, काहे तें संसारासक्ति ज्ञानकी विरोधी है । यह पंचदशी में कहा