SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 3 वि० ३. ज्ञानभूमिका. ६१ "" सहित वाणियां न प्राप्त होइकै जातें निवृत्त होवे हैं " यन्मनसा न मनुते " " जिसको मनकरके लोक नहीं जाणते " ॥ १६ ॥ (३८) अब ग्रंथ अभ्यासका फल कहे हैं:सोरठा - प्रगट करी गुरुदेव, सप्तभूमिका ज्ञानकी ॥ अनाथ उहे निज मेव. चित दै करत विचार जो ॥ १७ ॥ टीका :- अनाथदासजी कहे हैं: - गुरुने प्रगट करी जो ज्ञानकी सप्तभूमिका, चित्तको एकाग्रकर जो तिनकों विचारे, सो अपने वास्तव स्वरूपको जान लेवै ॥ १७ ॥ दोहा - तृतीयो माल विचारको, हरन सकल संताप || ज्ञानभूमिका प्रगट कर, भयो शांत अब आप ॥ १८ ॥ इति श्रीविचारमालायां सप्तज्ञानभूमिका वर्णनं नाम तृतीयविश्रामः समाप्तः ॥ ३ ॥
SR No.007743
Book TitleVicharmala Granth Satik Pustak 1 to 8
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnathdas Sadhu, Govinddas Sadhu
PublisherGujarati Chapkhana
Publication Year1832
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy