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မိုး
विचारमाला.
वि० ३.
त होने है । तैसें देहसैं लेकर बुद्धिपर्यंत जो पदार्थ कहे हैं तिन सर्वोका अभाव कहिये अधिष्ठान ब्रह्मरूपसैं प्रतीति, यह पदार्थों की अनुपलब्धिरूप षष्ठी भूमिका कही है ॥ १५॥
(३७) अब तुरीया नामक सप्तमी भूमिका दिखावै हैं:दोहा - भावाभाव न तहां कछु, सप्तम तुरिया मांहि ॥ मैं तू तहां न संभवै, कहा अ कह नाहिं ॥ १६ ॥
टीका:- सप्तम तुरीया नाम भूमिका मैं मैं शब्दका अर्थ प्रमाता, तू शब्दका अर्थ प्रमेय, इन दोनो के बनतें अर्थ से सिद्ध हुआ जो प्रमाण या त्रिपुटीरूप द्वैतकी जैसे चतुर्थी पंचमी भूमिका मैं भावरूपकर प्रतीति होवै; तैसें नहीं होवे हैं | अभाव रूपकर जैसे षष्ठी भूमिका में प्रतीति होवे, तैसेची होवे नहीं । जो कहो भावाभाव पदार्थोंतें भिन्न शेष रही वस्तु क्या है ? तहां सुनोः - वाणीका अविषय होने अवाच्य है । यामैं श्रुति प्रमाण है: - "यतो वाचो निवर्तते अप्राप्य मनसा सह" मन
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