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वि० ३. ज्ञानभूमिका. ५९
(३५) अब पंचमी असंसक्ति नाम भूमिकाका स्वरूप कहै हैं:दोहा-छूटयोतन अभिमान जब, निश्चयकियो स्वरूप ॥ असंसक्ति यह भूमिका, पंचम महा अनूप ॥ १४॥
टीका:-चतुर्थ भूमिकामैं निश्चय किया जो पृथक अभिन्नरूप ब्रह्म, तिसमैं अभ्यासकी अधिकतासैं मदीयत्व रूपकर जो शरीरका अभिमान ताकी निवृत्ति, अर्थात् पर शरीखत् शरीरकी प्रतीति; यह उपमासै रहित पंचमी असंसक्ति नाम भूमिका है।।१४॥
(३६)अब षष्ठी पदार्थाभाविनी भूमिका दिखावे हैं:दोहा-कहे पदारथ बुद्धि लों,सबको होइअभाव ॥ यह पदारथाभाविनी, षष्ठी भूमिलषाव ॥ १५॥
टीका:-दृष्टांतः-जैसे स्वर्णवेत्ता पुरुषकू कटकादि भूषणोंके विद्यमान होयाबी सर्व स्वर्णरूप ही प्रती