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________________ विचारमाला.... वि० ३.. . त्याहार ॥ थिर ढ शुद्ध स्वरूपकी, राखै नित संभार॥ १२॥ टीका:-बाह्य अंतर विषयोंते चित्तका रोध करकै नैरतयं ब्रह्मरूप ध्येयकी स्मृति सो तीसरी तनुमानसा नाम भूमिका है। मनकी सूक्ष्मता, तनुमानसा शब्दका अर्थ है ।। १२ ॥ (३४) अब चतुर्थी सत्त्वापत्ति भूमिकाका स्वरूप दिखावै हैं: दोहा-चतुर्थी सत्त्वापत्ति यह, अनुभव . उदय अभंग ॥आत्मा जगदरस्यो भलै, . ज्यों मध सिंधु तरंग ॥ १३॥ टीका:-पूर्वोक्त रीतिसँ ब्रह्मचिंतन करणेते उदय भया जो संशय विपर्यय रहित तत्त्वसाक्षात्कार, तिसकर आत्मामैं नामरूप आत्मक प्रपंचकी मिथ्यारूपकर प्रतीति होवै है । जैसैं समुद्रमैं मिथ्यारूप करके लहरियोंकी . प्रतीति होवै है । यह चतुर्थी सत्वापत्तिरूप भूमिका है१३
SR No.007743
Book TitleVicharmala Granth Satik Pustak 1 to 8
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnathdas Sadhu, Govinddas Sadhu
PublisherGujarati Chapkhana
Publication Year1832
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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