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वि०३. ज्ञानभूमिका.
[३] कंठ [४] औ सर्व शरीर [५]ये इनके क्रमसैं • स्थान होते हैं । औ क्षुधापिपासा [१] मलमुत्र अ.
धोनयन [२] भुक्त पीत अन्नजलको पाचन [३] योग समकरणा [४] श्वास औ रसमेलन [५] ए पंच इनकी क्रमसैं क्रिया होवै हैं । तैसें एक एक भूतके सत्त्व अंश” पंच ज्ञान इंद्रियोंकी उत्पत्ति इस रीतिसँ होवै हैः-आकाशके सत्वरज अंश” श्रोत्र औ वाकूकी उत्पत्ति । वायुकै सत्त्व रजो अंश त्वक् औ पाणिकी उत्प• त्ति । अनिके सत्त्व रजोअंशत् प्राण औ उदाकी उत्पति होवै है । इस रीति सूक्ष्म सृष्टिकी उत्पत्तिसैं अनंतरईश्वर इच्छासै भूतोंका पंचीकरण इस रीतिसँ होवै है:एक एक भूतके तमोअंशके दो दो भाग भये तिनमै एक एक भाग पृथक् ज्योंका त्यों रहा, अपर अर्ध भागों के चार चार भाग किये, सो अपने अपने भागकू छोड़के पृथक् रहे, अर्धभागोंमें मिले पंचीकरण होते है। एक एकमैं पंच पंच मिलणेका नाम पंचीकरण है। तिनः स्थूल ब्रह्मांडकी उत्पत्ति होवे है । ब्रह्मांडके