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विचारमाला.. वि०३० संसार यह है:-" तदैक्षत बहुस्यां प्रजायेय” सो परमेश्वर इच्छा करता भया "मैं एकसैं बहुत प्रजारूप होवौं ” या परमेश्वरइच्छा जगतकी उपादानरूप प्रकृति तमोप्रधान होवै है, तिसतै शब्दसहित आकाशकी उत्पत्ति होवै है; आकाश वायुकी, वायुमें स्वगुण स्पर्श औ शब्द गुण कारणका होवै है। वायु अमि, आनिमें अपना रूप गुण औ शब्द स्पर्श कारणोंके होवे है। अमितें जल होवे है औ जलमें आपका रस गुण औ शब्द स्पर्श औ रूप ये तीन कारणोंके गुण होवै हैं । जलतें पृथ्वी औ पृथ्वीमें आपका गंधरण
औ शब्द स्पर्श रूप औ रस, ये चार कारणोंके गुण उपजते हैं । इस रीतिसँ भूतोंकी उत्पत्तित पश्चात पंचभूतोंके मिले सत्त्व अंशतें अंतःकरणकी उत्पत्ति होवै है। सो अंतःकरण, वृत्तिभेदसै चार प्रकारका है। मन, बुद्धि 'चित्त, अहंकाररूप, तैसें भूतोंके मिले रजो अंशतै प्राण, अपान, समान, उदान, व्यानरूप, पंचविध प्राण होवै है । हृदय [ १ ] युदा [२] नाभि