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विचारमालाः वि० ३... टीका:-तिन पुराणोंके श्रवणते भगवत् विष प्रीति भगवत ज्ञानते भिन्न और किसीत मोक्षका निश्चय ताकी निवृत्तिः भगवतमें प्रेमसहित चित्तकी स्थिति, औ परमेश्वर भक्तवत्सल है, दयाल हैं, प्रणतपाल हैं, पति: - तपावन हैं इत्यादि भगवत् गुण गायन करते हुए शरीरमैं पुलकावली औ प्रतिदिन हृदयमैं भगवतसंबंधी अधिक प्रीति, इत्यादि शुभ गुणोंकी जिज्ञासाके संभवतें प्रथम शुभइच्छा नाम भूमिका कही ॥ १० ॥ . '
(३२) अब अपर सुविचारना नामः भूमिकाका स्वरूप कहै हैं:दोहा-दूजी कही विचारना, उपज्योतत्त्वविचार ॥ एकांत है शोधन लायो, कोऽहं को संसार॥११॥
टीका:-जव तत्त्वविचार उपज्यो, तत्त्व क्या है, मिथ्या क्या है यह मैं जानूं, तब एकांतमें स्थित : होइकर विचार करने लागाः मैं कौन हूं, यह स्थूल देहही मैं हूं, जो स्थूल देहहीं मैं होवों तो याकू त्याग