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वि० ३.
ज्ञानभूमिका.
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(१०) शिष्य उवाच ॥ भो भगवन् लघु मति सुगम, रहस्य लह्यो नहि जात ॥ भिन्न भिन्न ताते कहो, ज्ञान भूमिका सात ॥ ८ ॥ टीका: - रहस्य नाम स्वरूपका है। अन्य स्पष्ट||८|| (३१) श्रीगुरुरुवाच ॥ ज्ञानभूमिका वर्णनदोहा - विषयविषे भइ द्वेषता, गुरु तीरथ अनुराग ॥ ताते शुभ इच्छा कही, कथा श्रवण मन लाग ॥ ९ ॥
टीका:- विषयों में अनित्यता, सातिशयता । दुःखसाध्यता औ जिनका स्पर्शमात्र आयुपरिणाममें अति दुःखप्रद हैं इत्यादि दूषणोंतें द्वेषता कहिये त्यागकी इच्छापूर्वक गुरुतीर्थ में प्रीति औ पुराणादिकों के श्रवणमें चित्तकी प्रवृत्ति ॥ ९ ॥ दोहा - भगवति रति गति आन मति, प्रेमयुक्त नित चित्त ॥ गुण गावत पुलकित हृदय ॥ दिन दिन सरस सुहित्त ॥ १० ॥