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५० विचारमाला. दोहा-पोलत सहज स्वभाव जे, वचन मनोहर संत ॥ सप्तभूमिका ज्ञानकी, ति- . नहीमें दरसंत ॥४॥ टीका:-हे शिष्य ! संत जो मनके हरनेवाले स्वाभाविक बैन बोले हैं, तिन वचनोंमही ज्ञानकियां सप्त भूमिका दिखावे हैं । इति अन्वयः॥ ४॥ . (२८) शिष्य उवाच.. दोहा-भो भगवन मैं दुखित अति, और न.कछ सहाय ॥ सप्त भूमिका ज्ञानकी, कही मोहिं समुझाय ॥५॥ ( २९) श्रीगुरुरुवाच ।। शुभ इच्छा सुविचारना, तनु मानसा सुहोय ॥ सत्त्वापत्तिअसंसक्ति, पदार्थाभाविनि सोय ॥६॥ तुरिया सप्तम भूमिका, हे शिष यह नि. धार॥ जो कछु अब संशय करे, वरनों सोइ प्रकार॥७॥ .. .. ..
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