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विचारमाला.. टीका:-हे भगवन् ! आपने कहा जो संत अपेक्षा रहित हैं औ सुखके समुद्र हैं, सो इत्यादि संतों के लक्षण मैंने निश्चय कर जाने हैं ॥ १॥ ___ अब जिस अभिप्रायकू चित्तमैं धारकर शिष्यने कहा, सो अभिप्राय प्रगट करे है:दोहा-हौं कामी वैसुमति चित, मोहि न आवै बूझ ॥कैसे हित उपदेशकी, परेगैल निज सूझ ॥२॥
टीका:-हे भगवन् ! काम नाम विषयोंका है तिनकी इच्छावाला मैं हूं या कामी हूं, वै महात्मा सुमतिचित्त कहिये चेतनमैं निष्ठावाले हैं; ताः मेरा औ उनका संबं. धकैसे होवै ? औ जो आप ऐसे कहो संत दयालु स्वभाव हैं तात तेरी उपेक्षा करें नहीं, तथापि मोहि न आवै. बूझ कहिये मैं प्रश्न नहीं कर जाणूं हूं, तातें किस रीतिः सैं निजहित कहिये अपणा मोक्ष ताका मारग जो ज्ञान, सो कैसे जान्या जावै ॥२॥