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वि० ३. ज्ञानभूमिका. गही सार है, काहेरौं सुष्ठु जो ब्रह्मविचार ताकू दिखायके भेद बुद्धि दूर करे है " ॥ २६ ॥ दोहा-दुतियो माल विचारको, तिलकसहित विश्राम ॥ इती भयो कह संतगुण, हैं जौ आत्माराम ॥२७॥ इति श्रीविचारमालायां संतमहिमावर्णनं नाम
द्वितीयविश्रामः समाप्तः ॥२॥ अथ ज्ञानभूमिकावर्णनं नाम
तृतीयविश्रामप्रारंभः ॥३॥ (२६) अब ज्ञान कीयां सप्त भूमिका दिखावणेकी इच्छा कर तृतीय प्रकरणका आरंभ करते हुए ग्रंथकार, आदिमैं शिष्यकी उक्ति कहे हैं:-शिष्य उवाच.
दोहा-भो भगवन गुण साधुके, मैं जाने निर्धार॥ निरपेच्छक संकल्पगत, हैं सुखसिंधु अपार ॥१॥