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४६ विचारमाला. वि० २.. विद्वान् तिनोंने यह निर्णय कीया है, अनेक उपायकर मुमुक्षुने सत्संगही करणीय है ।। २४ ॥
ताम हेतु कहै हैं:दोहा-और धर्म जेतिक जगत, आहिं सकाम स्वरूप ॥ ज्ञान साधन उद्योतको, है सत्संग अनूप ॥ २५॥ टीका और यावत् धर्म जगत्में हैं सो इस लोक औ परलोकका जो विषयजन्य सुख तिसके देनेवाले हैं, यातें सकामरूप हैं, औ उपमा रहित जो सत्संग है सो ज्ञानकी प्रकटताका साधन है ॥ २५॥
(२५) अब ताकी श्रेष्ठतामैं प्रमाण कहै हैं:दोहा-श्रुति स्मृति श्रीमुख कयौ, सत्संगत जग सार ॥ अनाथ मिटावै विष- . मता, दरसावै सुविचार ॥२६॥ .. टीका:-ग्रंथकार उक्तिः श्रुतिस्मृतिमैं औ भागवतमैं श्रीकृष्ण देवनेभी यही कहा हैः-" इस जगतमैं सत्सं