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________________ वि०.२. संतमहिमा.. ४५ (२४) अब उक्त अर्थ में प्रमाणरूप जो वसिष्ठवचन, तिसको अर्थ पढ़े हैं: दोहा--मुक्ति द्वारपालक चतुर, शम संतोष विचार ॥ चौथो सत्संगत धरम, महापूज्य निर्धार ॥ २३ ॥ टीका:-- जैसें राजमंदिर में द्वारपाल अन्य पुरुषका प्रवेश करावे हैं, तैसें मुक्तिरूप मंदिर में प्रवेश करावणेवाले यद्यपि शम, संतोष, विचार, सत्संग, यह चार हैं; तथापि चतुर्थ जो सत्संगरूप धर्म सो विद्वानोंने महाप्पू'ज्य निर्णय कीया है || २३ ॥ सोई उत्तर दोहेकर दिखावै हैं:दोहा - मुक्ति करन बंधन हरन, बहुत यतन जग भव्य ॥ पै यह कोटि उपाय करि, सत्संगत कर्तव्य ॥ २४ ॥ टीका :- यद्यपि मुक्तिके करनेवाले औ बंधनोंके हरनेवाले बहुत यत्न शास्त्रों में कहे हैं, तथापि भव्य जो
SR No.007743
Book TitleVicharmala Granth Satik Pustak 1 to 8
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnathdas Sadhu, Govinddas Sadhu
PublisherGujarati Chapkhana
Publication Year1832
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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