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विचारमाला. वि०२. ककर कहता हूं, ब्रह्म सत्य है, जगत् मिथ्या है औ जीव ब्रह्मरूप है"
(२३) अब सत्संगको सुमेरु अरु कैलासतै अधिक वर्णन करै हैं:दोहा-किं सुमेरु कैलास कि, सब तरु तरै रहंत ॥ सत्संगति गिरिमलयसम, सब .तरु मलय करंत ॥२२॥
टीका:-जैसे गिरिमलय कहिये सुगंधिवाला पर्वत, अपणेमैं स्थित वृक्षोंकू मलय कहिये सुगंधिवाले करै है, तैसें संतबी स्वसमीपवर्ती पुरुषोंमें स्ववर्ती श्रेष्ठ गुण प्राप्त करे हैं, या मलयगिरिक समान हैं । ननु सर्व देवोंका निवासस्थान औ स्वर्णमय मेरु तैसेंही रजतरूप जो कैलास तिनके समान संत, किंउ ना हुए ? तहां सुनोःयद्यपि मेरु स्वर्णमय है तथापि क्या है, औ यद्यपि कै. लास रजतमय है तथापि क्या है, काहेत स्ववर्ती वृक्षों को स्वर्ण किंवा रजतरूप नहीं कर सके हैं, यात संतोंकी "तुल्यताके योग्य नहीं ॥२२॥