SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विचारमाला. दोहा-तीरथ गंगादिक सबै, करि निश्चय सेवै जु॥ सो केवल सत्संगमै, प्रानी फल लैवै जु॥१९॥ टीका:--अंतःकरणकी शुद्धिकी इच्छा करके गंगादि तीर्थोंका सेवन किये जो फल प्राप्त होवै है, सो अंतःकरणकी शुद्धिरूप फल सत्संग करणे मात्रसैं यह पुरुष पावे है ।। १९॥ . (२१) हे भगवन् ! चित्तकी एकाग्रता अर्थ तो हिरण्यगर्भादि देवनकी उपासना करणीय है ? तहां गुरु कहै हैं:दोहा-ब्रह्मादिक देवा सकल, तिन भजि जो फल होत ॥ सत्संगतमैं सहजही, वेगहिं होत उद्योत ॥२०॥ टीकाः-हिरण्यगर्भसे आदि लेकर देवनकी उपासनातै चित्तकी एकाग्रतारूप फल होवै है, सो चित्तकी एकाग्रतारूप फल सत्संगमैं अनायास उदय होवै है२०
SR No.007743
Book TitleVicharmala Granth Satik Pustak 1 to 8
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnathdas Sadhu, Govinddas Sadhu
PublisherGujarati Chapkhana
Publication Year1832
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy